Wednesday, 7 December 2011

तराजू के दोनों पलड़ों के बीच से

1
मैंने सबसे पहले तराजू के दोनों पलड़ों के बीच से 
आपकी आँखों को देखा था 
जब आपने गल्ले की दुकान पर बैठे सेठ को 
बढाया था हाथ की परची ,
जिसमें था आपके महीने भर का 
राशन का बजट .
 
आपकी फेहरिस्त में था -
चावल ,आटा, किस्म किस्म का  दाल
तेल , मसाले ,हल्दी , नमक , तेजपत्ते .
 
तराजू के दोनों पलड़ों के बीच से ही
मैं देखा करता था आपकी जरूरतें ,
और तौला करता था जिंसों को
जो आपके जिस्म की सलामती के लिये
बेहद जरूरी थीं .
 
जिंसों को तौल कर
मैं बड़े ही सलीके से
बाँधा करता था उन्हें
कागज के ठोंगों में ,
और फिर सुतली से बांध
उन्हें भर दिया करता था
आपके थैले में .
 
और ऊपर से दोनों मुट्ठी  भर तेजपत्ते
मुफ्त में आपके थैले में रख देता .
 
2
 
तराजू के दोनों पलड़ों के बीच ही
मैंने पाया कि उनके पलड़े भी
हो गए बेमानी ,
जब मेरे हाथ उन पलड़ों पर
सामान तौलने की बजाय
चावल , दाल , आटे और तेल मसालों के
बंद पैकेट उठाने में ज्यादा व्यस्त रहने लगे .
 
और  तेजपत्ते भी अब बिकने लगे थे .
 
3
 
सालों तक गल्ले की दुकान में नौकरी के बाद
फिर मैं हूँ नौकरी की तलाश में .
 
मैं झांक भी आया हूँ ,
उन  शीशों के भीतर ,
जहाँ आपके  हाथ  खुद उठा रहे थे
जिंसों के पैकेट को ,
और जल्दबाजी में  रख रहे थे उन्हें
प्लास्टिक की टोकरी में .
 
दुकान से बाहर आने पर
सुनहली खाकी ड्रेस में दरवान
आपको  सलाम बजाता था ,
और आप  चंद सिक्के रख रहे थे
उसकी हथेलियों पर .
 
मैं समझ गया था
मेरी जगह तराजू के दोनों पलड़ों की बीच
अब कहीं नहीं थी ,
अब वह दुकान के बाहर आ गयी थी .
 

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