Wednesday, 7 December 2011

सर्दियों में

सर्दी  का आगाज़ हो चुका था  
लोग गरम कपड़े खरीद रहे थे
लोग लिहाफ दुरुस्त करवा रहे थे .
 
मौसम विज्ञानियों की भविष्यवाणी ने
फैला रखी थी  दहशत -
उनकी भविष्यवाणी ठंढ के बारे में थी ,
उन्होंने साफ़ साफ़ कह दिया था
इस बार की ठंढ
हजारों लाखों  बरस के ठंढ के मुकाबिले
सबसे ज्यादा होगी .
 
जैसे उन्होंने हजारों लाखो बरस पहले भी
अपने ईजाद किये उपकरणों से ही
मापा था ठंढ  को .
 
उन्होंने साफ़ साफ़ मुनादी कर दी थी
कि हिमालय पर जम जायेंगे
पहले से कई गुना ज्यादा बर्फ ,
जम जाएँगी नदियाँ
और यह ठंढ इस बार
हाड कंपा देगी .
 
टेलीविजन के कई चैनल गवाह थे,
जो  किसी पूजा के पंडाल में 
लगे रिकॉर्ड प्लयेर में गाने  की तरह 
बार बार बज  रहे थे .
 
उनकी  बार बार दी जानेवाली चेतावनी
से लोग जम रहे थे
लोग सहम रहे थे .
 
उन्होंने यहाँ तक कहा था
कि मुंबई तक भी इतनी ठंढ पहुंचेगी
कि सिहर जाएगी मुंबई
ठहर जाएगी मुंबई .
 
पिछली गर्मियों में भी
उन्होंने की थी भविष्यवाणी
कि इस बार रिकॉर्ड गर्मी पड़ेगी
तालाब  सूख जायेंगे
नदियाँ सूख जाएँगी ,
पिघल जायेंगे ग्लेशियर
और समूचा संसार हो जायेगा
जल -प्लावित .
 
 
और इसलिए लोग डर रहे थे
कि सिर्फ जल -प्लावन को छोड़ कर
सारा कुछ हो ही गया था लगभग .
जमीं दरक गए थे
नदी- नाले सूख गए थे .
गर्मियों से मरे थे कई डांगर .
 
लोग डर रहे थे
कड़ाके की ठंढ उनके हाड न कंपा दे
और इसलिए
वे दुरुस्त करवा रहे थे लिहाफ
खरीद रहे थे गरम ऊनी कपड़े
ला रहे थे 'हॉट ब्लोअर' .
 
 
मेरे गाँव का कलुआ भी कर रहा था
सरदी से बचने का उपाय ,
कर रहा था गूदड़ी के बिस्तर को मोटा ,
चीथड़े कपड़ों से ,
 
मौसम विज्ञानियों की खतरनाक 
भविष्यवाणी जाने बिना भी
वह जमा कर रहा था सूखी लकडियाँ ,
कि वह पूस की रातों में
हाड़ कंपाने वाली ठंढ से बचे .
 
उसे मालूम था तो सिर्फ यही
कि हर बरस हाड़ कंपानेवाली ठंढ पड़ती है
हर बरस उसकी बस्ती के बूढ़े
मर जाते हैं कड़ाके की ठंढ से
जो पहुँच जाती है
देह को छेद कर हाड़ तक .
 
उसे एमर्सन राड , हॉट ब्लोअर , गीजर के बारे में
कुछ पता नहीं ,
उसे सिर्फ यही पता है
कि अलाव के पास बैठ कर
काटी जा सकती है रात ,
ठंढ से बचते हुए .
 
उसे यह भी पता है
कि खैरात में  मिलनेवाली कम्बल 
मिलेगी जाड़े के बाद
जब वह जिन्दा बच रहा  होगा
जाड़े के बाद .
 
वह कर रहा है
सर्दियों की तैयारी
सर्दियों से बचने की तैयारी .
 
वह कर रहा सूखी लकड़ियाँ इकट्ठा
इस भय से
कि कहीं खैरात में
किसी ने नहीं जलाई अलाव ,
तो सूखी लकड़ियाँ बचा सकें उसे
हाड़ कंपानेवली ठंढ से .
 
 

2 comments:

  1. ji, koshish kee hai maine usi hakikat ko vyakta karne kee. thank u mam .

    ReplyDelete