तस्वीर बनाना चाहता हूँ
हरे भरे पहाड़ों की
जिसमें न हो धूल गर्द ,
केवल हरा ही हरा हो सब कुछ .
पर तस्वीर में उकर आती है
सूखी कड़क दरकी हुयी फटी जमीन ,
हरे रंग की जगह उभर आते हैं
उदास पीले मटमैले रंग .
एक महल बनाना चाहता हूँ
रत्नजडित खम्भों और दीवारों की
पर कैनवास पर बन जाती है
कच्ची मिटटी की दीवारों की
फूस की छप्परोंवाली एक झोंपड़ी .
मैंने चाहा था बनाना
एक गोल मटोल गलगुथना बच्चा
बन गया वह
अकाल पीड़ित सूखा ग्रस्त प्रदेश
का हर एक अगला बच्चा .
एक जवाँमर्द की तस्वीर
बदल गयी
पिचके गाल कृशकाय शख्स की
जवानी में .
और तो और
एक बूढ़े की तस्वीर तो
बदल गयी शैय्या पर बैठे
मृत्यु के इंतज़ार में
किसी आदमी में .
बना न सका
हरे भरे पहाड़ोंवाली तस्वीर
रत्नजडित महलों की तस्वीर
गलगुथने बच्चे
फुर्तीले युवा
स्वस्थ बूढ़े की तस्वीर .
मेरी तूलिका साथ नहीं दे रही
जिम्मेवार कौन
मैं नहीं जानता
मेरा बस चले
तो मैं बनाऊं हमेशा
रत्नजडित महल की तस्वीर
हरे भरे पहाड़ों की तस्वीर .