Friday, 11 November 2011

मोमबत्ती
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बत्ती ने काठ से मोम तक का
सफ़र तय किया था
कई सदियों में
और वह बनी मोमबत्ती.
 
लुकाठी में जलती आग
पहली बार लगी थी प्यारी और खूबसूरत
जब उसे मिला था मोम का सहारा .
 
मोम ने मर्म को छुआ था कई बार
और हम जलाने लगे थे मोमबत्तियां ,
शुभ और मार्मिक स्थलों पर .
 
हमने रिझाये लक्ष्मी को
दीपावली  के अवसर पर ,
खुशियों  की मोमबत्ती जला कर
और मोमबत्तियां जला कर
प्रकट की संवेदना
सामूहिक स्थलों पर
अपने प्रिय जनों की याद में
जो मारे गए सामूहिक नरसंहारों में .
 
काठ में लगी आग
जब सामूहिक उत्साह और लक्ष्य
को इंगित थी
वहीं मर्म स्थल से पिघली चेतना
मोम के रूप में संघनित हुयी थी
जो पिघलती थी
जब जब हमारा मर्म होता था आहत.
 
मोम ने दिया था एक सन्देश
काठ के दिलों को मोम होने का
मोम ने पत्थर दिलों को
पिघलाने की की थी एक अदना सी कोशिश
मोम बना सदाशयता और सहृदयता का संबल
 
यह मोमबत्ती जलती रहे
सदियों तक युगों तक
यूँ ही  अपनी रौ में
ठीक ऐसे  ही
अपने पूरे  वजूद के साथ.
 
 

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