Friday, 11 November 2011

आवाज़
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तरह तरह की आवाज़ों के बीच
मैं फर्क नहीं कर पाता.
यह मेरी श्रवण -इंद्रियों  का दोष है
या मेरी समझ शक्ति का
यह मेरे लिए एक अबूझ पहेली ही
बना रहा .
 
बादल  फटने की आवाज़ और
भीखू रिक्शावाले के ह्रदय फटने की आवाज़
(जब उसका घर शहर के अतिक्रमण हटाओ अभियान
में हटाया गया )
दोनों आवाजें मुझे साफ़ साफ़ सुनायी  पडीं थीं 
भीखू के ह्रदय फटने की आवाज़
मुझे बादल  फटने की आवाज़ से भी तेज
और लगी थी धारदार .
 
रात के सन्नाटे में भी
होता है एक शोर
उस चुप्पी की भी
होती है एक भाषा  
 सुन सकता हूँ जिसे मैं
साफ़ साफ़ .
 
मुझे सुनायी पड़ती है
एक भूखे की करुण पुकार ,
बुखार में तपते हुए
किसी बीमार का आर्त्त स्वर .
पेट के लिए देह का सौदा करती
लड़कियों की मौन दारुण टेर.
जिंदगी को जुए की तरह
हारे आदमी की कातर कराह .
 
जिंदगी की भाषा
और उसके आवाज़ को
समझने  की तरकीब ,
काश सिखा दे यह जिन्दगी ही ,
इसी  उम्मीद में
सुनने की कोशिश  करता हूँ
इन आवाज़ों को मैं .

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