Friday, 11 November 2011

तुम जो उर्फ़ रोटी का फर्क

 
तुम जो सुबह  अपनी रिक्शा से
मुझे अपने दफ्तर छोड़ते हो 
तुम जो शाम को मुझे अपने 
घर पहुँचाते  हो .
तुम जो मेरे जूते की पालिश करते हो 
तुम   जो मेरे कपड़ों पर इस्तरी लगाते हो 
तुम  जो मेरे रास्ते को सुगम बनाने के लिये 
पत्थर तोड़ते हो दिन भर .
तुम जो काम करते हो यह सब
अपनी रोटी के लिये मेरी ही तरह .
तुम जब मुझे घर छोड़ते हो
तो फिर किसी को छोड़ते हो घर
मेरे जूतों  के बाद भी
किसी और जूते पर करते हो पालिश
मेरे कपड़ों के बाद
किसी और कपड़े पर
चला रहे होते हो इस्तरी .
मेरे घर पहुँच  जाने के बाद भी
पत्थर तोड़ते हुए
तोड़ते हो अपनी हाड़ .
शाम को मैं घर पहुँच कर  देखता हूँ
ब्रांडेड आटे को गुंथे जाते  हुए 
अपनी रोटी के लिये तैयार होते हुए .
तुम तब भी पहुंचा रहे होते हो
किसी को घर
पालिश कर रहे होते हो जूते
इस्तरी कर रहे होते हो कपड़े
हाड़ तोड़
तोड़ते हो पत्थर .
क्योंकि तुम्हें अच्छी तरह पता है  
तुम्हारे लिये आटा पिसा जाना
अभी बाकी है
किसी चक्की में .

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