चक्रव्यूह
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मैंने खुद ही रचा है
अपने लिए एक चक्रव्यूह,
बुना है
अपना लिये ही एक मकडजाल.
मैंने कई हदें पार करने की कोशिश की थी
कई पहाड़ ,जंगल ,नदियाँ , रेगिस्तान
कई बंदिशें ,कई सरहदें
जो बाँधी थी खुद के लिए
उन्हें ही तोड़ कर निकल जाना चाहा था
एक अनजान देश , एक अनजाने मुकाम की ओर.
उन चहारदीवारियों को फांदने की कोशिश में
छिलीं थीं मेरी कुहनियाँ और घुटने
और रिसा था खून पसीने के साथ साथ .
क्या तुम बता सकते हो
जब तुम बुनते हो खुद के लिए बंदिशें
तय करते हो खुद की सरहदें
रचते हो खुद की एक लक्ष्मण रेखा ,
तो क्या सचमुच उस सीमा रेखा से
बाहर निकलने के लिए
तुम कभी नहीं छटपटाते .
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