Saturday, 5 November 2011

आशियाना
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नहीं कहूँगा घर में दीवारें ना भी हों तो चलेगा
और ना हो छत भी तो .
पर हो तो एक घर कैसा भी
जिसे कह सकें घर .
ना एकड़ ,ना बीघे की बात यहाँ
ना फुलवारी ना बगीचे की .
यह भी जरूरी नहीं कि
दीखे पूरा पूरा आकाश .
बस कुछ वर्ग फूट की ही तो बात है
जमीन ना भी हो चलेगा
आकाश में टंगे घरों की तरह ,
हो तो कोई भी ,कैसा भी
घर जिसे कहें तो आशियाना

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