सुबह भी एक धुंध थी
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सुबह भी एक धुंध थी
रात्त से छायी हुयी धुंध I
लोगों ने सोचा था जब सुबह उठेंगे वो
रोज की तरह
हट चुकी होगी धुंध
और वो हर रोज की तरह
अपने दिन की शुरुआत करेंगे
सडकों या पार्कों में टहलने से
और पसरी होगी एक उजली धूप I
रोज की तरह दिन की शुरुआत
सन्नाटे को चीरते हुए होगी
सडकों पर दौड़ने लगेंगी गाड़ियां
लोगबाग चीटियों की तरह
कतारों में रेंगने लगेंगे
और सड़क रोज की तरह
रौंदी जाने लगेगी I
लेकिन यह सुबह
बिलकुल अलग थी
न हाकरों ने बांटी अखबार
न दूधवाले डब्बे लेकर दौड़े
न फेरीवालों ने लगाई हांकें
न मस्जिदों में अजान पढ़े गए
न मंदिरों में बजी घंटियाँ I
लोग दुबके रहे घरों में
और करते रहे इंतज़ार
धुंध के छंटने का I
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