तानाशाह के बाद
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अब बंदूकें नहीं करेंगीं बेवज़ह गगनभेदी शोर
उस से निकली गोलियां
नहीं भेदेंगी किसी निहत्थे निरीह के सीने को .
अब हम मिल सकेंगे उस पार्क में निर्भीक होकर
जहाँ शाम ढले खट-खटाती थीं बूटें,
और बूटें करतीं थीं
एक ऐसी डरावनी आवाज़ पैदा
जिनसे टूट जाते थे हमारे सपने .
हमारी विस्फारित आकाँक्षाओं को
समेटे हुए था जो एक अनजाना साया
उनके प्रस्फुटन का आ गया है समय ,
हमारी आँखों में अन्खुआये सपनों में .
संगीनों की नोक तले बचपन के
जवान होने का समय अब नहीं रहा ,
फूलों की वादियों में
पैदा होगा एक नया अहसास ,
कींचड से सनी मिटटी में
सन रहे होंगे मजबूत होते पाँव.
उदीप्त ख्वाहिशें जो गुलमोहर के पीछे
झाड़ियों में कैद थीं
झाड़ियों में फंसी हुयी चिड़िया सी निकल
आ गयी है बेख़ौफ़ नीले आसमान में ,
और भर रही हैं उन्मुक्त उड़ान .
एक पीढी जो पैदा हुयी ,जवान हुयी
और हो गयी बूढ़ी ,
जिनके शब्दकोश में न थे
कई शब्द -
आशाएं , जिज्ञासाएं , अभिलाषाएं
हिम्मत ,आवाज़ और सपने
उन्होंने नौनिहालों को
सिखाना शुरू कर दिया है
इनका ककहरा .
दिमाग पर लगे पहरे हट गए हैं
और लोगों ने फिर से शुरू कर दिया है
सोचना उस अँधेरी सुरंग से बाहर निकल कर ,
जहाँ बिठाये थे तानाशाह ने पहरे
और जहाँ जीवन के अंतिम पलों में
तानाशाह पाया गया था .
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