Friday, 11 November 2011

 अभिव्यक्ति
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शब्दों की क्षमताएं अपार हैं .
मेरे  लिए यह एक दुरूह व्यापार है .
अभिव्यक्ति का संकट क्या उनके लिए है
जो नहीं कर पाते अपनी बात दो टूक .
या जो मिटटी ,जमीन ,पानी ,धूप और हवाओं से
नहीं उगा पाते कोई सार्थक फसल .
 
विचारों की उपज और भूख का नाता
मुझे समझ नहीं आता
पेट की आग से उपजी सोच
और मक्खन से भरे हुए पेट
के बीच क्या सिर्फ इतनी समानता है 
क़ि काली रोशनाई  से दोनों का बयान होता है
एक आदमी जमीन पकड़ के रोता है
और दूसरा आकाश क़ि ऊँचाइयों को छूता है
 
 
 

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