सुथनी
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सुथनी आलू की कोई बहन ही होगी
या होगा उसका कोई दूर दूर का
नजदीकी रिश्ता .
आलू सदियों से संपूर्ण आहार था
उनका जिनके तन पर कपड़े भी न थे
और सुथनी भी साथ साथ
भरती रही उन भूखे पेटों को .
पता नहीं क्यों कर और किसने
रखा नाम सुथनी .
आलू से उलट बेस्वाद होना उसकी
फितरत थी
और किसी को बेवजह उदास
होते देखे जाने पर
उसके चेहरे की तुलना सुथनी से की जाती .
आलू की तरह कई गढ़े थे उस पर
पर कान पर उगे बालों की तरह
उसे थे हलके बाल .
पतली चमड़ियों के साथ
गौर वर्ण मुस्काती थी वह
अपनी पूर्ण आकाँक्षाओं और उम्मीदों के साथ .
सुथनी की कोई थनें न थीं गायों की तरह
और न ही उस से दूध की तरह
सुस्वादु होने की उम्मीद की जा सकती थी .
हाँ ,मुसहरों ने चूहों के मांस के साथ
जरुर परोसा होगा उसका चोखा
अपने आहार में .
पूस की कई रातों में
अलाव के साथ उसनी गयी होगी वह
जिसे खा कर कितनों ने
जगाई होंगी बेहतर कल की उम्मीदें .
सुथनी पवित्र थी
वह भी चढी छठ में सूप पर
अर्घ्य बनकर सूर्य की
और इस वक़्त बिकी वह
सेव से भी महंगी
जबकी रुपये वैसे ही गिर रहे थे
अंतर -राष्ट्रीय बाज़ार में
और तेल चढ़ रहा था
सुथनी फिर साल में एक बार ही
खोजी जायेगी
और सिर्फ तभी वह होगी
अपने पूरे भाव में .
gajab...!! sachmuch lajabab soch hai aapki..
ReplyDeleteji , apko pasand aayi ,utsahit hoon .dhanyavad shashi jee .
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