Tuesday, 8 November 2011

जिंदगी की  भाषा और लय
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जिंदगी ने अपनी भाषा खो दी है कहीं 
अपनी बेबाकबयानी के शब्द कहीं खो दिए हैं 
चीजों के लिए सही अक्षर और
अक्षरों को जोड़ जोड़ 
दिए जानेवाले सही शब्द 
सही मात्राओं के साथ नहीं मिल रहे .
 
धरती को धरती 
सूरज को सूरज 
और चाँद को चाँद 
किन हरफों को जोड़ जोड़ कर कहें 
सही हरफ सही जुमले 
नहीं मिल रहे .  
 
सुबह सूरज के साथ उगता हुआ आदमी 
और सूरज के साथ शाम को डूबता हुआ आदमी 
अपनी चिंता ,परेशानी और फ़िक्र को 
इस कदर जीता है 
कि जुमले के कपड़ों को हरफों से सीता है
और  हरफों को सही जुमले 
और जुमलों को सही हरफ नहीं मिलते .
 
मंद बयार के संग बह रही खुशबू के संग 
सरसों के तेल की छौंक ने 
आदमी के नथुनों की नसों को 
और   चौड़ा कर दिया है , 
और वह बस ,ट्रेन और ट्राम के साथ
लगातार दौड़ रहा है
घुड़ -शक्ति को आदम -शक्ति से परास्त
करने की  अदम्य इच्छा  के साथ.
 
शाम होते ही अपने घर में 
दुबका हुआ आदमी 
अपने सपनों के संग  सोता है ,
 अगली होनेवाली सुबह के साथ 
ताल - मेल बिठाने वाले 
शब्दों की तलाश में -
सही अक्षर सही हरफ 
सही शब्दों ,सही जुमलों को जन्म देने वाली 
भाषा की लय में . 
 

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